हिमाचल में उपमुख्यमंत्री व सीपीएस पर हाई कोर्ट ने सुनाया अपना यह फैसला, क्लिक कर जानिए पूरा
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शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट में उप मुख्य मंत्री सहित सीपीएस की नियुक्तियों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई 18 सितम्बर के लिए टल गई। मामले की सुनवाई के पश्चात कोर्ट ने अंतरिम राहत के तौर पर सभी सीपीएस को काम करने से रोकने की मांग को फिलहाल लंबित रखने का फैसला सुनाया। याचिकाकर्ता ऊना से […]
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शिमला: प्रदेश हाईकोर्ट में उप मुख्य मंत्री सहित सीपीएस की नियुक्तियों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई 18 सितम्बर के लिए टल गई। मामले की सुनवाई के पश्चात कोर्ट ने अंतरिम राहत के तौर पर सभी सीपीएस को काम करने से रोकने की मांग को फिलहाल लंबित रखने का फैसला सुनाया। याचिकाकर्ता ऊना से विधायक सतपाल सिंह सत्ती और अन्य 11 विधायकों ने मामले के अंतिम निपटारे तक सभी सीपीएस को काम करने से रोकने के आदेशों की मांग की थी। प्रार्थियों की ओर से अंतरिम राहत के लिए दायर आवेदन को सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ध्यान में रखते हुए निपटाने की गुहार लगाई थी।
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सीपीएस की नियुक्तियों को विभिन्न याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी गई है। सबसे पहले वर्ष 2016 में पीपल फॉर रिस्पांसिबल गवर्नेंस संस्था ने सीपीएस को चुनौती दी थी। अब नई सरकार की ओर से सीपीएस की नियुक्ति किए जाने पर उन्हें प्रतिवादी बनाये जाने के लिए आवेदन किया गया है। मंडी निवासी कल्पना देवी ने भी सीपीएस की नियुक्तियों को लेकर याचिका दायर की है। ऊना से विधायक सतपाल सिंह सत्ती और अन्य 11 विधायकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सत्य पाल जैन ने पैरवी की। प्रार्थियों ने इस याचिका में उप-मुख्यमंत्री समेत सीपीएस की नियुक्ति को चुनौती दी है।
उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने भी एक आवेदन दायर कर याचिका की गुणवत्ता पर सवाल उठाए और उनकी ओर से पैरवी करने वाले पूर्व महाधिवक्ता श्रवण डोगरा ने उप मुख्यमंत्री को निजी प्रतिवादी बनाए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई। उनका कहना है कि पूरे देश में लगभग 11 उप मुख्यमंत्री संवैधानिक प्रावधानों के तहत नियुक्त किए गए हैं। उन्होंने खुद को इस मामले से बाहर किए जाने की गुहार भी लगाई है। याचिकाओं में अर्की विधानसभा क्षेत्र से सीपीएस संजय अवस्थी, कुल्लू से सुंदर सिंह, दून से राम कुमार, रोहड़ू से मोहन लाल ब्राक्टा, पालमपुर से आशीष बुटेल और बैजनाथ से किशोरी लाल की नियुक्ति को चुनौती दी गई है। सभी याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि पंजाब में भी ऐसी नियुक्तियां की गई थीं, जिन्हें पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी जिन्हें कोर्ट ने असंवैधानिक ठहराया था।
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