Himachal Politics || हिमाचल में कांग्रेस और भाजपा में विधानसभा उपचुनाव में दिलचस्प मुकाबला,
लोकसभा चुनाव के साथ ही इस बार अयोग्य घोषित किए गए कांग्रेस के छह विधायकों के क्षेत्रों में विधानसभा उपचुनाव भी होने से चुनावी माहौल दिलचस्प हो गया है।
Himachal Politics || लेकिन चुनाव से कुछ ही दिन पहले राज्यसभा सीट के लिए चुनाव के दौरान पार्टी के छह विधायकों की बगावत ने पूरा परिदृश्य और समीकरण बदल दिया है.बीजेपी इन अयोग्य विधायकों की मदद से कांग्रेस को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने की फिराक में है.पिछले चुनाव में बीजेपी ने राज्य की चारों सीटों पर जीत हासिल की थी.
शिमला: हिमाचल (Himachal ) की सियासत में तूफान की लहरें कम नहीं हुई हैं. इसका असर आगामी लोकसभा चुनाव (loksabha election) में दिखेगा.भाजपा को उम्मीद है कि वह इस लाभ का फायदा उठाएगी। अगर हिचकोले नहीं रुके तो कांग्रेस की नाव (foundation of congress) का भंवर से निकलना मुश्किल (difficult ) हो जाएगा. कांग्रेस को उम्मीद थी कि उसे अपनी सरकार होने का फायदा मिलेगा, अभी डेढ़ साल ही हुए हैं इसलिए ज्यादा एंटीइनकंबेंसी नहीं होगी.लोकसभा चुनाव के साथ-साथ इस बार कांग्रेस के छह अयोग्य विधायकों के निर्वाचन क्षेत्रों में उपचुनाव (byelections) भी दिलचस्प हो गया है।यह चुनाव सिर्फ कांग्रेस और भाजपा के बारे में नहीं है, बल्कि देश के भविष्य के बारे में भी है। राज्यसभा चुनाव के बाद यह सरकार के लिए एक और परीक्षा होगी.
लेकिन चुनाव से कुछ ही दिन पहले राज्यसभा सीट (rajysabha seat) के लिए चुनाव के दौरान पार्टी के छह विधायकों की बगावत ने पूरा परिदृश्य और समीकरण बदल दिया है.बीजेपी इन अयोग्य विधायकों (MLA's) की मदद से कांग्रेस को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने की फिराक में है.पिछले चुनाव में बीजेपी ने राज्य की चारों सीटों पर जीत हासिल की थी! बाद में, मंडी उपचुनाव (byelection) में कांग्रेस की प्रतिभा सिंह राज्य सरकार के प्रति सहानुभूति और कुछ नाराजगी के कारण सीट हार गईं। एक तरफ कांग्रेस डैमेज कंट्रोल में जुटी है तो दूसरी तरफ बीजेपी ने अपने दो मौजूदा सांसदों को उम्मीदवार घोषित कर दिया है जिनकी जीत पर उसे भरोसा है. केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और सुरेश कश्यप क्रमश: हमीरपुर और शिमला से आगे चल रहे हैं।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू स्थिति पर नजर रखे हुए हैं.संगठन की मुखिया प्रतिभा सिंह को लेकर आलाकमान खुद आश्वस्त नजर नहीं आ रहा है. कांग्रेस बिखरी हुई है, केंद्रीय नेतृत्व उसे पूरी तरह संगठित नहीं कर पा रहा है! ऐसा नहीं है कि सिर्फ कांग्रेस की नाव में ही छेद है. भाजपा (bjp) में कई गुट हैं लेकिन मजबूत केंद्रीय नेतृत्व और अनुशासन (discipline) के कारण पार्टी एक कतार में खड़ी है।कांग्रेस में पार्टी के अंदर नाराजगी को दूर करने के लिए सुक्खू ने संगठन के लोगों और विधायकों को एडजस्ट करने में तत्परता दिखाई है.महिलाओं को 1500 रुपये प्रति माह देना, स्कूल प्रबंधन समिति के शिक्षकों और कंप्यूटर शिक्षकों का मानदेय बढ़ाना, बढ़ी हुई बिजली दरों को सरकार की ओर से वहन करना जैसे जितने कल्याणकारी( welfare ) फैसले सरकार ले सकती थी, उसने लिए हैं। बजट के बाद भी. सोलह महीने की उपलब्धियां गिनाते हुए सरकार आपदा का साहस और सफलता से मुकाबला करने और इसमें केंद्र की मदद नहीं मिलने के मुद्दे को भुना रही है!
उन्होंने भाजपा (bjp) और आरएसएस (rss) पर राज्य सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करने का भी आरोप लगाया। कांग्रेस के पास बेरोजगारी, केंद्रीय स्तर पर संस्थाओं का विघटन जैसे मुद्दे हैं. भाजपा धारा 370, राम मंदिर जैसे राष्ट्रीय मुद्दे उठाएगी और हिमाचल को मिली केंद्रीय परियोजनाओं (central planning) और योजनाओं को भी गिनाएगी।इनमें रेल नेटवर्क का विस्तार, एम्स, ट्रिपल आईटी और पीजीआई सैटेलाइट सेंटर शामिल हैं। लोकसभा चुनाव के साथ-साथ उपचुनाव के नतीजे भी प्रदेश में एक नया इतिहास लिखेंगे।यदि कांग्रेस पक्ष में रही तो सुक्खू सरकार (Sukkhu government) को मजबूती मिलेगी, अन्यथा सरकार पर संकट खड़ा हो जाएगा। बीजेपी न सिर्फ केंद्र में सरकार बनाएगी बल्कि राज्य में भी सरकार बनाएगी.अगर वे पक्ष में नहीं हैं तो केंद्र और राज्य के नेताओं के कामकाज पर सवाल उठायेंगे!