हिमाचल में चुनाव के बाद OPS पर सुक्खू सरकार की सबसे बड़ी चुनौती,
- जून में आएगा 16वां वित्तायोग, मेमोरेंडम में लेना पड़ा ओपीएस का खर्चा
- 15वें वित्तायोग ने प्रतिबद्ध खर्चे घटाने को कहा था, सरकार ने बढ़ा लिए
- निरंतर घट रही रिवेन्यू डेफिसिट ग्रांट को बचाना अब सबसे बड़ी चुनौती
शिमला: हिमाचल प्रदेश सरकार को लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों के बाद ओल्ड पेंशन स्कीम पर बड़ा इम्तिहान आ रहा है। 16वां वित्त आयोग जून में हिमाचल प्रदेश दौरे पर आ रहा है। आजकल वित्त विभाग चुनाव आचार संहिता के बीच मेमोरेंडम बनाने में व्यस्त है। Finance Commission की टीम हिमाचल आने से पहले पोर्टल पर मेमोरेंडन अपलोड करना होगा। राज्य सरकार इस मेमोरेंडम में ओल्ड पेंशन स्कीम की देनदारी के कारण अतिरिक्त अनुदान की मांग करेगी। ओपीएस ड्राफ्ट मेमोरेंडम में शामिल है। चुनाव बाद की स्थिति भी नतीजों पर बहुत निर्भर करेगी।
जून में आएगा 16वां वित्तायोग, मेमोरेंडम में लेना पड़ा ओपीएस का खर्चा
15वें वित्त आयोग ने हिमाचल प्रदेश के लिए कई सुझाव दिए थे। Himachal Pradesh को पांच साल के लिए 81,977 करोड़ रुपये दिए गए, जिसमें 35,064 करोड़ रुपये केंद्रीय करों के वितरण में दिए गए और 46,913 करोड़ रुपये ग्रांट इन ऐड के तौर पर दिए गए। 15वें वित्त आयोग ने फाइनांशियल रिस्पांसिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट एक्ट का पालन करने के साथ पर्यटन और कनेक्टिविटी को बढ़ाने की सलाह दी थी। साथ ही कहा गया था कि हिमाचल प्रदेश कमिटेड एक्सपेंडिचर या प्रतिबद्ध देनदारी को कम करे।
15वें वित्तायोग ने प्रतिबद्ध खर्चे घटाने को कहा था, सरकार ने बढ़ा लिए
यही कारण है कि हिमाचल इस अंतर को स्वयं पूरा करने के लिए वित्त आयोग ने रिवेन्यू डिफिसिट ग्रांट में हर साल कटौती भी की थी। वर्तमान सरकार अब ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू कर चुकी है। पुरानी सरकार की वेतन-पेंशन एरियर की देनदारी भी प्रतिबद्ध खर्चों को बढ़ाती है। सरकारी कर्मचारियों की संख्या स्थिर है, क्योंकि नए रोजगार के मामले में पिछले लगभग तीन साल में कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं हुई है। यह राज्य के बेरोजगारों के लिए नहीं होगा, लेकिन वित्तायोग के सामने कम से कम सरकार के लिए राहत होगी।
निरंतर घट रही रिवेन्यू डेफिसिट ग्रांट को बचाना अब सबसे बड़ी चुनौती
16वें वित्त आयोग की सिफारिशें पहली अप्रैल, 2026 से अगले पांच साल तक लागू होनी चाहिए, इसलिए सरकार को रिवेन्यू डिफिसिट ग्रांट को बचाना मुश्किल होगा। इसी राजस्व घाटा अनुदान से हिमाचल प्रदेश का हर महीने 2000 करोड़ रुपये का सैलरी और पेंशन बिल बैलेंस होता है। राज्य सरकार अब 16वें वित्त आयोग से प्रतिबद्ध खर्चों को दिखाते हुए कमजोर कंज्यूमर बेस पर अतिरिक्त अनुदान की मांग करेगी।