कहां है दुनिया का एकमात्र मंदिर, जहां होता है जीवित लोगों का पिंडदान?
हिंदू धर्म में जीवित व्यक्ति के पिंडदान की भी परंपरा है। ये परंपरा गया के एक मंदिर में ही निभाई जाती है। बिहार के गया में भगवान जनार्दन का मंदिर है। यहां कोई भी जीवित व्यक्ति अपना स्वयं का पिंड दान और श्राद्ध कर सकता है। यहां के अलावा और कहीं भी इस तरह की […]
हिंदू धर्म में जीवित व्यक्ति के पिंडदान की भी परंपरा है। ये परंपरा गया के एक मंदिर में ही निभाई जाती है। बिहार के गया में भगवान जनार्दन का मंदिर है। यहां कोई भी जीवित व्यक्ति अपना स्वयं का पिंड दान और श्राद्ध कर सकता है। यहां के अलावा और कहीं भी इस तरह की परंपरा नहीं है। किसी व्यक्ति को लगता है कि मृत्यु के बाद कोई भी उसके लिए पिंडदान नहीं करेगा तो वह यहां आकर स्वयं का श्राद्ध कर सकता है। मान्यता है कि इससे मरने के बाद उसकी आत्मा को शांति मिलेगी। मंदिर के बारे में मान्यता है कि भगवान विष्णु जनार्दन स्वामी के रूप में स्वयं जीवित व्यक्ति का पिंड ग्रहण करते हैं। इससे पिंडदान करने वाले को मरने के बाद मोक्ष मिलता है। यहां 10 से अधिक तर्पण स्थल हैं। लेकिन पूरे विश्व में जनार्दन मंदिर एक मात्र ऐसा स्थल है, जहां आत्म श्राद्ध यानी जीते जी खुद का पिंडदान करते हैं।
पिंडदान की शुरुआत कब और किसने की?
कृष्ण पक्ष के चौबीस दिनों को ही पितृपक्ष कहते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार, भगवान राम ने गयाजी में पिंडदान की शुरुआत की। यहां कहा जाता है कि भगवान राम, सीता और लक्ष्मण ने पिता राजा दशरथ को पिंडदान दिया था। यह भी कहा गया कि इस स्थान पर पिंडदान करने से पिता स्वर्ग जाएंगे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यहां भगवान श्री हरि पितृ देवता के रूप में विराजमान हैं। यही कारण है कि इसे पितृतीर्थ भी कहा जाता है। याद रखें कि गया का महत्व इतना बड़ा है कि हर साल लाखों लोग यहां अपने पूर्वजों का अंतिम संस्कार करने आते हैं।