Success Story || 1.5 लाख महीने की सरकारी नौकरी छोड़ बने IAS, जॉब के साथ की तैयारी, UPSC में पाई 8वीं रैंक
Success Story || जरा सोचिए, अगर आप वर्ष 2009 में डेढ़ लाख तक की सैलरी के साथ एक सरकारी पद पर कार्यरत होते, तो आप शायद खुशी-खुशी काम कर रहे होते और अपने करियर को आगे बढ़ाते होते. हालांकि, आज जो कुछ हम आपको बताने जा रहे हैं, वह अलग है। एक व्यक्ति की कहानी जो आईएएस (IAS) यानि कलेक्टर बनने की जुनून से प्रेरित था और पैसे को महत्व नहीं देते हुए यूपीएससी (UPSC) की परीक्षा पास कर लिया। सूर्यपाल गंगवार उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में रहता है। सूर्यपाल गंगवार का जन्म बिथरी गांव में नवाबगंज तहसील में हुआ था। सूर्यपाल बताते हैं कि बचपन में जब मैं रोने लगता था, मेरी मां कहती थी, "चुप हो जाओ, मेरा बेटा कलेक्टर बनेगा।" उस समय मैं इसका अर्थ नहीं समझता था, लेकिन जब मैं इसका अर्थ समझ गया, तब से मैं आईएएस बनने का सपना सवार हो गया. मैं एक सामान्य परिवार में जन्मा हुआ था और मेरे साथ भी कई बाध्यताएं थीं।
उनकी पढ़ाई एक से पांच तक नवाबगंज शहर के एक निजी स्कूल में हुई। इस इलाके में ग्रामीण बच्चों के लिए नवोदय स्कूल का उद्घाटन 1986 में हुआ था. छात्रों ने अपने पहले बैच में 6वीं में प्रवेश किया। सूर्यपाल बताते हैं कि स्कूल पहले आवासीय था, लेकिन सुविधाओं का अभाव था। सूर्यपाल का कहना है कि स्कूल में डीएम और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों का आना-जाना लगा रहता था, जिससे उन्हें डीएम बनने की प्रेरणा मिलती थी। यहीं से मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वह इंजीनियरिंग में करियर करने का फैसला किया और आईआईटी रुड़की (IIT) में दाखिला लिया।
सूर्यपाल कहते हैं कि उस समय पारिवारिक हालात अच्छे नहीं थे, इसलिए नौकरी करना जरूरी था। उन्हें इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद कोलकाता में नौकरी मिली। उन् होंने यहां कई साल तक इलेक् ट्रिकल मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड (ईएससी) और फिलिप्स इंडिया लिमिटेड में काम किया, लेकिन उनका मन यूपी वापस आने का था। उन्होंने सेलेक्शन मैनेजर प्लानिंग के तौर पर सेंचुरी लैमिनेटिंग कंपनी लिमिटेड हापुड में काम किया, फिर ओरकल में भी काम किया। सूर्यपाल ने 2003 की जुलाई में एयर इंडिया लिमिटेड (इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग) में पदार्पण किया और दिल्ली में ज्वाइन कर लिया। दिसंबर 2008 तक वह इस स्थान पर कार्यरत रहे। सूर्यपाल ने 2004 में यूपीएससी की पहली परीक्षा दी, लेकिन सफल नहीं हुए। 2005 में उन्होंने UPSC की तैयारी शुरू की। उन्हें इस बार भी परीक्षा में सफलता नहीं मिली। सूर्यपाल बताते हैं कि नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने अपना पूरा समय और बल यूपीएससी की तैयारी में लगाया।
वह सुबह पांच बजे घर छोड़ देते थे और दो घंटे की व्याख्यान के बाद नौ बजे तक कार्यालय में रहते थे। वह इंडियन एयरलाइंस में काम करने के बाद शाम छह बजे ऑफिस से सीधे कोचिंग क्लास में जाते थे, जहां से देर रात तक घर पहुंचते थे। सूर्यपाल कहते हैं कि घरवाले भी उनकी दिनचर्या और जुनून को देखकर परेशान हो गए थे. पत्नी और परिवार ने बताया कि इंडियन एयरलाइंस में सरकारी नौकरी होने के बावजूद भी वे परेशान क्यों हैं। 2002–2003 में उनकी मासिक सैलरी लगभग डेढ़ लाख रुपये थी।
सूर्यपाल बताते हैं कि 2006 में उन्होंने प्रीलिम्स में सफलता प्राप्त की, लेकिन यूपीएससी मेन्स में सफलता नहीं मिली। 2007 में सूर्यपाल ने यूपीएससी की परीक्षा में 476वीं रैंक हासिल की। बाद में उन्हें आईआरएस (इंडियन रेवेन्यू सर्विस) में असिस्टेंट कमिशनर बनाया गया। वह दिसंबर 2008 से अगस्त 2009 तक इस विभाग में कार्यरत रहे, लेकिन इसी साल उन्होंने यूपीएससी में 8वीं रैंक हासिल किया और आईएएस बन गए। सूर्यपाल बताते हैं कि उनके दोस्तों ने अपना रिजल्ट देखा और फोन पर बताया तो उन्होंने इतनी तेज आवाज निकाली कि उनका गला रुंध गया। सूर्यपाल गंगवार पहले आजमगढ़, फूलपुर में एसडीएम रहे। बाद में वह सीडीओ बदायूं भी रहे, फिर हापुड़ के डीएम बने। इसके अलावा, वह हाथरस, सीतापुर, रायबरेली, सिद्धार्थनगर और फिरोजाबाद के डीएम भी रहे। वह लखनऊ के डीएम हैं। वह पहले उत्तर प्रदेश सरकार के सिविल एविएशन डिपार्टमेंट में डायरेक्टर और मध्यांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड में मैनेजिंग डायरेक्टर था।