कभी साबुन-तेल बेचते थे, आज हर रोज ₹1.3 करोड़ दान कर देता है ये कारोबारी, कहानी सबसे बड़े दानवीर की

Azim Premji Founder of Wipro Success Story in Hindi

जिस व्यापारिक साम्राज्य को अजीम प्रेमजी ने आज सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचाया है, उसकी शुरुआत उनके दादा ने की थी।उन्होंने मात्र 2 रुपए से अपना कारोबार शुरू किया था, जो बाद में एक बड़ी चावल व्यापार कंपनी बन गई

कभी साबुन-तेल बेचते थे, आज हर रोज ₹1.3 करोड़ दान कर देता है ये कारोबारी, कहानी सबसे बड़े दानवीर की
Azim Premji Founder of Wipro Success Story in Hindi

Azim Premji Wipro success story | नई दिल्ली:  जिस तरह महाभारत में कर्ण के नाम के साथ दानवीर जुड़ा था, उसी तरह आज के समय में बिजनेसमैन अजीम प्रेमजी (businessman Azim Premji) के नाम के साथ भी दानवीर जुड़ गया है। 24 जुलाई 1945 को जन्मे अजीम प्रेमजी आज भारतीय बिजनेस सेक्टर के दिग्गज हैं, लेकिन उन्होंने ये मुकाम कैसे हासिल किया और किस तरह की चुनौतियों (challenges) का सामना किया, आइए जानते हैं। जिस व्यापारिक साम्राज्य को अजीम प्रेमजी ने आज सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचाया है, उसकी शुरुआत उनके दादा ने की थी।उन्होंने मात्र 2 रुपए से अपना कारोबार शुरू किया था, जो बाद में एक बड़ी चावल व्यापार (rice trade) कंपनी बन गई। उनके बाद अज़ीम प्रेमजी के पिता मोहम्मद हाशिम प्रेमजी ने कारोबार संभाला. उस समय उन्हें "बर्मा का चावल राजा" कहा जाता था. बाद में वे भारत लौट आए और अपना खुद का कारोबार शुरू किया.

अंग्रेजों ने चावल का व्यापार बंद करवाया, लेकिन हार नहीं मानी

भारत आने के बाद उनका चावल का व्यापार (trade) अंग्रेजों के कारण ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका। इसीलिए 1945 में उन्होंने अपना चावल का व्यापार बंद कर दिया और वनस्पति घी बनाने लगे। इसके लिए उन्होंने "Western Indian Vegetable Products Limited" नाम से एक कंपनी शुरू की जो घी के साथ-साथ कपड़े धोने का साबुन (soap) भी बनाती थी।अज़ीम प्रेमजी का जन्म 1945 में हुआ था। यद्यपि यह व्यवसाय उन्हें विरासत में मिला था, लेकिन इसे आगे बढ़ाने के लिए अजीम प्रेमजी को कई चुनौतियों (challenges ) का भी सामना करना पड़ा।मुंबई से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि (achievement) प्राप्त की।इस दौरान उन्हें अपने जीवन के सबसे कठिन दौर का सामना करना पड़ा।1996 में, स्टैनफोर्ड में पढ़ाई के दौरान उन्हें अपने पिता की मृत्यु की खबर मिली।

उन्होंने मात्र 21 वर्ष की आयु में कंपनी की कमान संभाली।

उस समय उनकी उम्र मात्र 21 वर्ष थी, सबकुछ छोड़कर उन्हें भारत (india) लौटना पड़ा जहां अब अपने पिता के कारोबार को संभालने की जिम्मेदारी भी उनके कंधों पर थी। व्यवसाय के क्षेत्र में उनकी शुरुआत ही बहुत बड़ी चुनौती और दबाव के साथ हुई। कंपनी के कुछ शेयरधारकों ने भी उनका विरोध किया और कहा कि उन्हें कंपनी (company) को संभालने का कोई अनुभव नहीं है।इस दबाव और विरोध के बावजूद अजीम प्रेमजी ने 21 साल की उम्र में भी हार नहीं मानी और कंपनी की बागडोर अपने हाथ में ले ली। उन्होंने जल्द ही अपने पिता की इस विरासत को सफलतापूर्वक (successful) संभाला और इसे आगे बढ़ाना शुरू कर दिया।वनस्पति घी के कारोबार से शुरू हुई प्रेमजी परिवार की यह कंपनी आज भारत की सबसे बड़ी आईटी कंपनियों में से एक है।अजीम प्रेमजी को आईटी कंपनियों का बादशाह कहा जाता है।1977 तक उनकी कंपनी का काफी विस्तार हो गया और उन्होंने अपनी कंपनी का नाम बदलकर विप्रो रख लिया।उन्होंने बहुत पहले ही आईटी क्षेत्र में विस्तार (expend) को महसूस कर लिया था, जिसके परिणामस्वरूप आज भारत में एक सफल आईटी कंपनी है।

हर महीने अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा दान करें।

अज़ीम प्रेमजी ने अपने कारोबार से जितना कमाया, उतना समाज कल्याण के लिए खर्च किया। उनके नाम पर चल रही फ़ाउंडेशन के नाम पर 60% से ज़्यादा शेयर दिए गए हैं।ये फाउंडेशन बच्चों (children ) की शिक्षा के साथ-साथ अस्पताल और कई तरह के सामाजिक कल्याण से जुड़े काम भी कर रहे हैं।अजीम प्रेमजी ने 2019-20 में हर दिन लगभग 22 करोड़ रुपये यानी कुल 7,904 करोड़ रुपये परोपकारी कार्यों के लिए दान किए।एडेलगिव हुरुन इंडिया फिलैंथ्रोपी लिस्ट 2022 के अनुसार, अजीम प्रेमजी ने वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान 484 करोड़ रुपये दान किए। अजीम प्रेमजी आज भारतीय व्यापार (Indian trading) क्षेत्र के दिग्गज हैं और उनके परोपकार ने पूरी दुनिया को प्रेरित किया है।

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