Operation Meghdoot || ऑपरेशन मेघदूत’ क्या था और कैसे भारतीय सेना ने सियाचिन ग्लेशियर में चार दशक किए पूरे?

कराकोरम पर्वत शृंखला में करीब 20,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर दुनिया में सबसे ऊंचे सैन्यीकृत क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, जहां सैनिकों को बर्फीली और सर्द हवा से जूझना पड़ता है

Operation Meghdoot || अधिकारी ने कहा कि भारतीय सेना ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सियाचिन ग्लेशियर में अपनी उपस्थिति के 40 साल पूरे कर लिए हैं और बुनियादी ढांचे में वृद्धि के कारण पिछले कुछ वर्षों में इसकी परिचालन क्षमता में काफी सुधार हुआ है।

Operation Meghdoot || ऑपरेशन मेघदूत’ क्या था और कैसे भारतीय सेना ने सियाचिन ग्लेशियर में चार दशक किए पूरे?
Operation Meghdoot || Image credits ।। सोशल मीडिया

Operation Meghdoot ||  भारतीय सेना (Indian army) ने अपने 'ऑपरेशन मेघदूत' के तहत 13 अप्रैल 1984 को सियाचिन ग्लेशियर पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया।"सियाचिन ग्लेशियर पर भारतीय सेना का नियंत्रण न केवल अद्वितीय वीरता और दृढ़ संकल्प की गाथा (story) है, बल्कि तकनीकी प्रगति और रसद सुधार की एक असाधारण यात्रा भी है जिसने इस क्षेत्र को, सबसे दुर्जेय इलाकों में से एक, अदम्य भावना के प्रतीक में बदल दिया ।

भारी भार (havey weight) उठाने में सक्षम हेलीकॉप्टरों और ड्रोनों का उपयोग, सभी सतहों के लिए उपयुक्त वाहनों की तैनाती, मार्गों का एक विशाल नेटवर्क बिछाना ऐसे कई कदमों में से हैं, जिन्होंने दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन में भारत की सैन्य शक्ति को बढ़ाया है। अधिकारी ने कहा कि भारतीय सेना (Indian army) ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सियाचिन ग्लेशियर में अपनी उपस्थिति के 40 साल पूरे कर लिए हैं और बुनियादी ढांचे में वृद्धि के कारण पिछले कुछ वर्षों (some years) में इसकी परिचालन क्षमता में काफी सुधार हुआ है।

काराकोरम पर्वत श्रृंखला में लगभग 20,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर को दुनिया के सबसे ऊंचे सैन्यीकृत क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, जहां सैनिकों को बर्फीली और ठंडी हवाओं (cold waves) से जूझना पड़ता है।पिछले साल जनवरी में सेना के इंजीनियर कोर के कैप्टन शिवा चौहान को सियाचिन ग्लेशियर की अग्रिम चौकी पर तैनात किया गया था.किसी प्रमुख युद्धक्षेत्र में किसी महिला सैन्य अधिकारी की यह पहली ऐसी ऑपरेशनल तैनाती थी।

 काफी बदलाव आया  है

एक अन्य अधिकारी ने कहा कि डीआरडीओ (DRDO) द्वारा विकसित एटीवी ब्रिज जैसे नवाचारों ने सेना को प्राकृतिक बाधाओं पर काबू पाने में सक्षम बनाया है और हवाई केबलवे में उच्च गुणवत्ता वाली 'डायनेमा' रस्सियों ने दूरस्थ चौकियों तक भी आपूर्ति की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित की है। उन्होंने कहा, "भारी भार ले जाने में सक्षम हेलीकॉप्टरों और ड्रोनों ने इन चौकियों पर तैनात कर्मियों को आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में काफी सुधार किया है।" खासकर सर्दियों में ये चौकियां सड़क संपर्क (road connectivity) से कट जाती हैं।अधिकारी ने कहा, "विशेष कपड़ों, पर्वतारोहण उपकरणों, विशेष राशन की उपलब्धता से सैनिकों की दुनिया के सबसे ठंडे युद्धक्षेत्र में प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता बढ़ (increased) जाती है।"''

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