Chamba Jukaru Festival 2024 || पांगी की चार पंचायतों में मनाया दशालू मेला, भारी बर्फबारी के बीच कम नहीं हुई आस्था, यहा देखें वीडियो
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![Chamba Jukaru Festival 2024 || पांगी की चार पंचायतों में मनाया दशालू मेला, भारी बर्फबारी के बीच कम नहीं हुई आस्था, यहा देखें वीडियो](https://pangighatidanikapatrika.in/media-webp/2024-02/patrika-news-himachal390.jpg)
Chamba Pangi Jukaru || पांगी: जिला चंबा के जनजातीय क्षेत्र पांगी घाटी में 12 दिवसीय जुकारू उत्सव के पर्व पर 10वें दिन दशालू मेले का आयोजन किया गया। दशालू मेला पांगी घाटी के चार पंचायतों में मनाया जाता है। जिनमें मिंधल, पुर्थी पंचायत के थांदल गांव, रेई पंचायत व शौर पंचायत में यह मेला मनाया जाता है। सोमवार को भारी बर्फबारी के बीच लोगों में काफी उत्साह देखने को मिला। पांगी घाटी में मौजूदा समय में एक फीट के करीब बर्फबारी हुई है। लेकिन इसके बावजूद भी लोगों की आस्था कम नहीं हुई।
क्या है दशालू मेले का इतिहास
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भक्त घुंगती की चादर ओढ़ने वाली सुई को पंडित सुबह मंदिर से लेकर सौ लाड़ (मेला स्थान) में लेकर आता है। दिन को माता का ठठाड़ी (चेला) सुई को अपने मुंह में चुभा कर मंदिर परिसर में ले जाकर साफ-सफाई करके माता के चरणों में भेंट करता है। किवदंतियों और लोक आस्था के मुताबिक चंड-मुंड के खत्म होने के बाद माता ने मिधल भटवास में अपनी भक्तिन घुंगती के यहां प्रकट हुई थी। उस समय भक्तिन को वरदान दिए थे कि सर्दियों में जुकारू के बाद 10वें दिन मेरे मंदिर में जो मेला होगा, वह किसी न किसी रूप से तेरे नाम रहेगा। बताया जाता है कि तब से दशालु के दिन सुबह जब मंदिर में आरती की जाती है। उस समय मंदिर के कपाट पूर्ण रूप से बंद किए जाते हैं।
अपराह्न में माता का चेला ठठाड़ी जब मुंह में सुई डाल कर जाता है तो उस समय बर्फ की गिट्टी बनाकर फेंकते है, जिससे कपाट खुल जाते हैं। पांगी घाटी में जुकारू उत्सव के दौरान विभिन्न मेलों का आयोजन किया जाता है। इन मेलों में घाटी के लोग बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। इनमें विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जाता है। माता के जगड्डी (चेला) लेख चंद का कहना है कि दशालु सिल्ल के बाद 10वें दिन मनाया जाता है। यह मेला मिधल सहित पांगी के 10 स्थानों में मनाया जाता है। मिधल में माता की भक्तिन घुंगती की सुई मुख्य आकर्षण रहती है। माता जब से मिधल भटवास में आकर बसी हुई है, तब से दशालु का मेला मनाया जाता है। सुबह सुई को मेला स्थान पर लाया जाता है और अपराह्न को माता का ठठाड़ी(चेला) मुंह में डालता है और वापस मंदिर में पहुंचाता है।
बर्फबारी के बीच लोगों की आस्था। पांगी घाटी में जुकारु उत्सव के दसवें दिन चार पंचायत में मनाया उत्सव pic.twitter.com/6l0kBTWGEV
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जिसमें बाद मिंधल माता का ठाठड़ी यानी चेला मंदिर से सुई लेने जाता है। हालांकि मिंधल गांव में इस मेले के दिन सूई लेने से पहले बलि प्रथा देने का भी रिवाज था, लेकिन सरकार के आदेशों के बाद अब इस मेले के दिन केवल नारियल व अन्य सामग्री चढ़ाई जाती है। इस मेले को देखने के लिए घाटी के विभिन्न पंचायतों से लोग आते है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस मेले के दिन मिंधल माता का मुख्य ठाठड़ी सुबह करीब 27 किलोमीटर पैदल चलकर मिंधल गांव पहुंचता है। इसका मुख्य कारण यह है कि मिंधल माता का मुख्य चेला यानि ठाठड़ी किलाड़ के थमोह निवासी करतार सिंह है, जिसे नवालू व दशालू मनाने के दिन अपने घर में पूजा अर्चना करने के बाद मिंधल माता मंदिर के चुन्नी लगाकर व चोणू लगाकर मिंधल मंदिर पहुंचना पड़ता है।