Independence Day 2024 : PM मोदी ने किया बिरसा मुंडा को याद, जानिए आम इंसान कैसे बन गया भगवान
Independence Day 2024 : नई दिल्ली: बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के रांची जिले में हुआ था। उनका पूरा नाम बिरसा दाऊ मुंडा था। बिरसा मुंडा को "धरती आबा" यानी "पिता धरती" के नाम से जाना जाता था। उलगुलान नामक विद्रोह का नेतृत्व किया बिरसा मुंडा ने 1895 में "उलगुलान" नामक विद्रोह का नेतृत्व किया, जिसे "बिरसा मुंडा विद्रोह" भी कहा जाता है।
ब्रिटिश शासन के खिलाफ बिरसा मुंडा की लड़ाई ब्रिटिश शासन के खिलाफ बिरसा मुंडा ने लड़ाई लड़ी और आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्ष किया। बिरसा मुंडा ने आदिवासी संस्कृति की रक्षा की बिरसा मुंडा ने आदिवासी संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करने के लिए काम किया। उनके नेतृत्व में वन अधिकारों की लड़ाई लड़ी।
ब्रिटिश पुलिस ने बिरसा मुंडा को कब किया गिरफ्तार ब्रिटिश पुलिस ने बिरसा मुंडा को 1900 में गिरफ्तार कर लिया और जेल में डाल दिया। 9 जून 1900 को जेल में ही बिरसा मुंडा की मौत हो गई। मृत्यु के बाद मिला भगवान का दर्जा मृत्यु के बाद बिरसा मुंडा को "भगवान" के रूप में पूजा जाने लगा। आदिवासी महापुरुष बिरसा मुंडा को "आदिवासी महापुरुष" के रूप में जाना जाता है और 15 नवंबर को जन्मदिन को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नायकों में से एक बिरसा मुंडा बिरसा मुंडा के नाम पर कई संस्थानों और स्थानों का नाम रखा गया है। इन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नायकों में से एक माना जाता है। बिरसा मुंडा की विरासत बिरसा मुंडा की विरासत आज भी आदिवासी समुदायों में जीवित है और उन्हें एक प्रेरणा के रूप में देखा जाता है। कहते हैं न कि जीवन लम्बा न सही लेकिन प्रभावशाली होना चाहिए; कुछ ऐसा ही प्रभाव था बिरसा मुंडा का, जिसने उन्हें आम इंसान से भगवान बना दिया था।
छोटा नागपुर के जंगलों में लगे पुराने पेड़ों की पत्तियाँ जब हवा से लहराती हैं तो मानो वो आज भी बिरसा मुंडा के शौर्य और साहस की कहानियाँ सुनाया करती हैं, जिनसे आज भी भारत के कुछ लोग अनजान हैं। कहानी एक 25 साल के आदिवासी नौजवान युवा की है जिसने अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला दी थी, कहानी बिरसा मुंडा की है। उलिहातू, भारत के झारखण्ड राज्य में खूंटी जिले का एक गाँव, तारीख़ 15 नवंबर, साल 1875, जन्म हुआ एक ऐसे बालक का जो भविष्य में एक क्रांति का महानायक बनने वाला था; जिसका नाम इतिहास में अमर होने वाला था, बालक का नाम था बिरसा मुंडा।
अपनी पहली शिक्षा सालगा गाँव के शिक्षक जयपाल नाग से ली और उनकी सिफारिश पर जर्मन मिशनरी स्कूल में दाखिला ले लिया। जर्मन मिशनरी स्कूल में दाखिले की अपनी एक कहानी है; दाखिले के लिए बिरसा मुंडा को बिरसा डेविड बनना पड़ा यानी अपना धर्म परिवर्तन करना पड़ा। दरसल स्कूलों में धार्मिक प्रवचन दिए जाते थे जिसमे ईसाई मूल्य और राजभक्ति की बातें की जाती थी, साथ ही ये वादे भी किये जाते थे कि अगर आदिवासी ईसाई बने रहे हैं तो उनको उनकी ज़मीनें वापस मिल जाएँगी जो ज़मींदारों और महाजनों ने आदिवासियों से छीन ली थी। उन दिनों जर्मन लूथरन और रोमन कैथोलिक ईसाई किसानों का भूमि आंदोलन चल रहा था। इन ईसाई किसानों को सरदार कहा जाता था।