साल में सिर्फ 1 एक दिन के लिए खुलते है इस मंदिर के कपाट, पूरी दुनिया में एक मात्र है यह प्रतिमा ।। Nagchandreshwar Temple of Ujjain
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Nagchandreshwar Temple of Ujjain: साल में सिर्फ 1 एक दिन के लिए खुलते है इस मंदिर के कपाट, पूरी दुनिया में एक मात्र है यह प्रतिमा
पत्रिका एजैंसी: साल में सिर्फ 1 एक दिन के लिए खुलते है इस मंदिर के कपाट, पूरी दुनिया में एक मात्र है यह प्रतिमा। आज नागपंचमी है सुबह से ही सभी मंदिरो में भक्तो का ताता लगा है. दिक पंचांग के अनुसार, हर साल श्रावण मास के कृष्ण एवं शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन नाग पंचमी पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष के सावन माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी 21 अगस्त को मनाई जा रही है। ऐसे में नाग देवता की पूजा करने से साधक के सभी कष्ट दूर होते हैं। इस शुभ अवसर पर वर्ष में केवल एक दिन खुलने वाले नागचंद्रेश्वर मंदिर में नाग देवता के दर्शनों से साधक को शुभ फलों की प्राप्ति होती है। तो चलिए आज एक ऐसे मंदिर के बारे में बताते है जो सिर्फ साल में एक बार नाग पंचमी के दिन खुलता है.
नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा
आपको बता दे की ऐसी मान्यता है कि नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं। नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। कहते हैं यह प्रतिमा पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। नागपंचमी पर भगवान नागचंद्रेश्वर की त्रिकाल पूजा का विधान है। बता दे की उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का, जो की उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है।
मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी पर ही दर्शनों के लिए खोला जाता
इसकी खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी ( श्रावण शुक्ल पंचमी) पर ही दर्शनों के लिए खोला जाता है। इस वर्ष नाग पंचमी के अवसर पर 20 अगस्त की रात 12 बजे मंदिर के शीर्ष पर स्थित भगवान नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट खुलेंगे। मंदिर में दर्शन का सिलसिला 24 घंटों तक चलता रहेगा। भक्तगण 21 अगस्त की मध्यरात्रि 12 बजे तक इस मंदिर के दर्शन कर सकेंगे। पहली पूजा 20 अगस्त की रात 12 बजे मंदिर के पट खुलने पर की जाएगी। दूसरी पूजा 21 अगस्त को दोपहर 12 बजे शासन की ओर से की जाएगी और तीसरी पूजा 21 अगस्त की शाम भगवान महाकाल की संध्या आरती संपन्न होने के बाद महाकाल के पुजारी व मंदिर के अधिकारियों द्वारा की जाएगी।
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