पत्रिका टीम: (मेघ सिंह कश्यप) देशभर में आज गुरु नानक जयंती मनाई जा रही है। हर साल कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु नानक जयंती मनाई जाती है। गुरु नानक देव सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के पहले गुरु माने जाते हैं। कहा जाता है कि बचपन से ही गुरु नानक देव का आध्यात्मिकता की तरफ काफी रुझान था और वह सत्संग और चिंतन में लगे रहते थे। श्री गुरु नानक जी का जन्म उस समय हुआ जब जोरझ्रजबर हकमों के अत्याचारों से पूरी सृष्टि में त्राहि-त्राहि मची थी . ऐसे समय में पश्चिम पाकिस्तान के जिला लाहौर के राए भोए की तलवंडी नामक गांव में कार्तिक सुधी पूर्णमाशी संवत् 1525 वि. को हिंदु परिवार में कालू चंद महिता के घर माता तृपता जी के गर्भ से नानक जी का जन्म हुआ . नानक जी जन्म लेते ही हंस पड़े और घर में सूर्य जैसा प्रकाश व सारे घर में सुगंधी फैल गई थी . नाम करण के लिए जब पंडित को बुलाया तो पंडित जी ने बच्चे का चेहरा देख के कालू चंद को कहा यह बच्चा बड़ा ही भाग्याशाली है
पंडित हरदियाल ने जन्म कुंडली से विचार करके बालक का नाम नानक रखा . जब पांच वर्ष के हुए तो उनके पिता जी ने उन्हें पाठशाला भेज दिया लेखाकार की पढ़ाई पूरी करने के बाद गुरु नानक जी को फारसी पड़ने के लिए मुल्लां कुतबदीन के पास छोड़ दिया. नानक जी चुप-चाप रहते थे वह हमेशा परमपिता परमेश्वर के ध्यान में ही रहते थे . मुला ने उनसे इस तरह चुप रहने का कारण पूछा और कहा खुदा के लिए अपने मन की बात बताओ . तब नानक जी ने कहा हे मुल्लां जी ! मैं यह दुनियां नश्वर जान कर सदा मौत से डरता हूं, इस लिए मेरी यह दशा है . मौत का कुछ पता नहीं कब आ जाए इस लिए मन को विकारों से मोड़ कर परमेश्वर के आगे सदा ही विनयशील बने रहना चाहिए परमात्मा के बारे श्री गुरु ग्रंथ साहिब,पृष्ठ न.21 व 721,रागु तिलंग महला पहला में नानक जी ने कहा है कि- यक अरज गुफतम पेसि तो दर गोस कुन करतार हका कबीर करीम तू बेएब परवरदिगार फाही सुरत मलूकी वेस उह ठगवाड़ा ठगी देस खरा सियाणा बहुता भार धाणक रूप रहा करतार नानक जी हर समय वैराग्य में ही मस्त रहते थे े उनके पिता जी उनको पैसे देकर व्यापार के लिए कहीं भेजते थे तो वह उन पैसों से खाने की सामग्री लेकर साधू संतों को भोजन करा कर तथा खाली हाथ घर वापिस आ जाते थे . जिस कारण उनके पिता ने उन्हें अपनी पुत्री के पास सुलतानपुर लोधी भेज दिया नानक जी के जीजा जी ने उन्हें नवाब दौलत खां के पास मोदी खाने के काम पर लगा दिया .
नानक जी के पास सुबह-शाम तक मोदी खाने में सौदा लेने वालों की भीड़ लगी रहती जब ग्राहकों को सौदा तोल कर देते तो तेरह तेरह करके सब को सौदा देते मतलब सब तेरा सब तेरा करके ग्राहकों को सौदा बांट देते थे . जिसकी शिकायत लोगों ने नवाब के पास कर दी की आपका मौदी खाना लुटाया जा रहा है . नवाब ने जब हिसाब करवाया तो एक सौ पैंतीस रुपए की बढ़ोतरी निकली नवाब बड़ा खुश हुआ . नानक जी की शिकायत नवाब से फिर हुई लेकिन हर बार नवाब की ओर नानक जी का हिसाब ज्यादा ही निकलता था .नानक जी की शादी बटाले के रहने वाले मूल चंद चोने की पुत्री सुलखनी से हुई .सुलखनी के उदर से बाबा श्री चंद जी और बाबा लखमी चंद जी दो संताने उत्पन हुई
एक दिन नानक जी वेई नदी में नित्य मयार्दा के अनुसार स्नान करने गए तो गोता लगाकर इस तरह अलोप हुए बाहर ही नहीं आए ेनवाब ने नदी में जाल डलवाए कोई पता नहीं चला े तीन दिन के बाद वेई नदी के बाहर आए े लोगों ने पुछा आप तीन दिन नदी में कैसे रहे तब नानक जी ने कहा हम परमेश्वर के साथ सचखण्ड गए थे े वेई नदी से निकलने के बाद गुरु नानक जी सब कुछ त्याग कर फकिरी वेश धारण करके भाई मरदाने को साथ लेकर निकल पड़े े रास्ते में कई लोगों को परमात्मा का ज्ञान उपदेश देते हुए आगे निकलते गए नानक जी ने इसी तरह लोगों को परमात्मा का ज्ञान समझाते हुए बनारस की तरफ जा रहे थे े काशी बनारस में कबीर जी अपनी झौंपड़ी में कपडे बुनने के कार्य के साथ सत्संग प्रवचन किया करते थे नानक जी व कबीर जी समकालीन संत हुए जिनकी आपसी बहुत सी लीलाएं भी की है
बनारस को जाते हुए रस्ते में मरदाने ने भूख के कारण कुछ खाने की इच्छा की उस समय नानक जी एक रीठे के वृक्ष के नीचे आराम कर रहे थे े तब उन्होंने मरदाने को रीठे की टहनियों को हिला कर रीठे गिराकर खाने ने को कहा े मरदाने ने आज्ञा का पालन करके रीठे गिरा कर खाए तो वह छुहारे जैसे मीठे थे े उस वृक्ष के रीठे आज भी मीठे हैं े गुरु नानक जी ने अंगद देव जी को गुरु गद्दी देकर सतलोक जाने की तैयारी कर ली इस बात को सुन के दूर-दूर से सिख सेवक गुरु जी के अंतिम दर्शन को आ गए े अपने दोनों साहिबजादों को भी बुलाया लेकिन साहिबजादे आकर थोड़ी देर पास बैठ कर चले गए े असूज सुदी दसवीं संवत् 1596 को समूह संगत के सामने गुरु जी चादर तान कर लेट गए और संगत को सत् भक्ति का उपदेश देते हुए अपना शरीर त्याग कर सतलोक चले गए हिंदू व मुस्लमानो में अंतिम संस्कार करने को आपस में तकरार होने लगी जब चादर उठाई देखा तो वहां गुरु नानक जी का शरीर नहीं है े चादर को दो भागों में बांट करके दोनों धर्मों के अनुयाईयों ने अपनीझ्रअपनी रस्मों के अनुसार संस्कार कर दिया े गुरु नानक जी संसार में 70 वर्ष पांच महीने और सात दिन परमपिता परमेश्वर का ज्ञान देकर करतारपुर में अपना शरीर त्याग करके ज्योति-ज्योत समा गए े