Himachal News || हिमाचल के इस जिले में आधी रात ऐसा क्या हो गया, कि लोग मशाल लेकर पहुंचे एक स्थान पर,
न्यूज हाइलाइट्स
सारांश:
Himachal News || केलांग। ऐसे ही नहीं हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। यहां पर रहने वाले लोगों की अपनी एक अलग संस्कृति व पहचान है वही अलग-अलग जिलों के लोगों की अपनी अलग ही संस्कृति है ।भगवान के प्रति लोगों की आस्थाएं इस कदर जुड़ी है कि अपने कुलदेवते को खुश करने के लिए अनोखे अंदाज में यहां की संस्कृति देखी जा सकती है। आज हम आपको हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिला लाहौल स्पीति वह जिला चंबा के जनजातीय क्षेत्र पांगी घाटी के एक ऐसे त्यौहार के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं ।
जिसमें लोग अपने घरों से मशाल लेकर इस उत्सव को मानते हैं। इन दोनों लाहौल घाटी में तकरीबन कई सालों बाद बिना बर्फ के इस हालड़ा उत्सव को मनाया जा रहा है बीते दिन तकरीबन 10:00 बजे लाहौल स्पीति के गाहर घाटी में तमाम ग्रामीणों द्वारा अपने घरों से मशाल निकालकर एक स्थान पर एकत्रित हुए। मान्यताओं के अनुसार लाहौल घाटी में लमाओं द्वारा निर्धारित समय वह स्थान पर मार्शल एकत्रित करना होता है और उस मशाल को पिंड को समर्पित करना होता है । इस त्यौहार के बाद संपूर्ण लाहौल घाटी मसाले के रोशनी से जगमगा उठी। लेकिन देवभूमि हिमाचल प्रदेश के लोगों की अपने त्योहार व संस्कृति के प्रति आस्था का एक अनोखा प्रतीक माना जाता है।वही कुछ दिनों के बाद इस उत्सव को चंबा कं पांगी घाटी में भी मनाया जाएगा।
जिसमें लोग अपने घरों से मशाल लेकर पहले अपने कुलदेवते को भेंट करते हैं। उसके बाद इस उत्सव को ढोल नगाड़ों के साथ मनाया जाता है। इस उत्सव को पांगी में खौउल उत्सव के नाम से जाना जाता है। वहीं लाहुल घाटी में हालड़ा के नाम से जाना जाता है। लोगों ने आपस में मिलन व भेंट की रस्म को गर्मजोशी से निभाते हुए आपस मे खुशियां बांटी। हालड़ा उत्सव के साथ घाटी में एक सप्ताह तक शिकर आपा, लक्ष्मी की पूजा की जाएगी और मन्नतें मांगी जाएंगी। मान्यता अनुसार सर्दियों में आसुरी शक्तियों का बोल बाला हो जाता है। इसी लिए बुरी आत्माओं को भगाने के लिए मशाल उत्सव का आयोजन किया जाता है।
इसलिए मनाया जाता है हालडा उत्सव
लाहौल स्पीति में इन दिनों बर्फ की मोटी चादर बिछ जाती है और कई जगह पर तो तापमान माइनस 30 डिग्री से भी नीचे चला जाता है। लोग अपने घरों में बंद हो जाते हैं और मान्यता है कि स्थानीय देवता भी स्वर्ग लौट जाते हैं। ऐसे में बुरी शक्तियों का प्रभाव बढ़ जाता है। इन बुरी शक्तियों को भगाने के लिए इस त्यौहार को मनाया जाता है। बर्फबारी और बर्फीली हवाओं के बीच सभी लोग मशाल लेकर रात को हालड़ो-हालड़ो कहते हुए निकलते हैं और बुरी आत्माओं को भगाने की रस्म पूरी करते हैं। इसके बाद घरों में जश्न होता है और लोग एक दूसरे के साथ खुशियां मनाते हैं।
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