पिता बैंक गार्ड-मां बेचती थी चाय, बेटा IIT से पढ़कर बना इसरो के Chandrayaan 3 का हिस्सा
न्यूज हाइलाइट्स
चांद पर चंद्रयान 3 भारत की स्पेस एजेंसी इसरो द्वारा चांद पर भेजा गया चंद्रयान 3 सफलता पूर्वक लैंड कर चुका है। Chandrayaan 3 भारत पहला देश इसके साथ भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। इतिहास में दर्ज हुई तारीख Chandrayaan-3 : चंद्रयान-3 मिशन का लैंडर मॉड्यूल 23 अगस्त शाम को चंद्रमा की सतह पर उतर गया। वैज्ञानिकों को सलाम इसरो के चंद्रयान 3 अभियान की सफलता में देश के वैज्ञानिकों का योगदान सलाम करने वाला है। भिलाई के भरत का योगदान भिलाई के भरत कुमार चंद्रयान-3 की टीम का हिस्सा बनकर इतिहास रच दिया है।
गरीबी में पले-बढ़े भारत के पास स्कूल में फीस भरने के पैसे नहीं थे। नौवीं क्लास में स्कूल की तरफ से टीसी दे दिया गया था। आईआईटी में गोल्ड मेडल भरत ने 12 वीं मेरिट के साथ पास की और उसका आईआईटी धनबाद के लिए चयन हुआ। उक उद्यमी ने फीस की मदद की। इसके बाद भरत ने 98 प्रतिशत के साथ आईआईटी धनबाद में गोल्ड मेडल हासिल किया।
इसरो में हुआ चयन भरत इंजीनियरिंग के 7वें सेमेस्टर में था, तब इसरो में वहां से अकेले भरत का प्लेसमेंट हुआ था। गरीब है परिवार भरत कुमार भिलाई के चरौदा के रहने वाले हैं। उनके पिता एक बैंक में गार्ड हैं। भरत की मां चरौदा में इडली और चाय का ठेला लगाती थीं। टपरी पर धोईं प्लेट इसरो में वैज्ञानिक भरत ने भी मां की टपरी पर बैठकर प्लेट धोने का काम किया है।
भारत ने अपने चंद्रयान-3 अभियान की सफलता से अंतरिक्ष में एक नया इतिहास लिखा है। इसरो की टीम की कड़ी मेहनत और प्रतिज्ञा निश्चित रूप से इस अभियान का कारण थी। छत्तीसगढ़ के चरौदा नामक छोटे से गाँव में जन्मे भरत कुमार भी इसरो की टीम चंद्रयान-3 में शामिल थे। एक अत्यंत गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले भरत की कहानी देश के लाखों गरीब युवा लोगों को सिखाने वाली है। भरत की मां चाय की दुकान चलाती है, और पिता बैंक में सुरक्षा गार्ड हैं।
भरत की सफलता की कहानी सोशल मीडिया पर बहुत वायरल हो रही है। ट्विटर (X) पर आर्यांश नामक एक यूजर ने यह प्रेरक लेख शेयर किया है। यह बताता है कि भरत ने चरौदा के केंद्रीय स्कूल से पढ़ाई की। स्कूली जीवन में उनका परिवार बहुत गरीब था। वास्तव में, जब वह नवीं कक्षा में थे, उनके घरवाले उनकी छोटी सी स्कूल फीस भी भरने में असमर्थ थे। स्कूल ने उनके परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति को देखते हुए उनकी बारहवीं तक की फीस का भुगतान माफ कर दिया। चरौदा रेलवे स्टेशन पर भी माँ ने इडली बेची। भरत ने मां की दुकान चलाने में भी मदद की।
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