Mahakumbh 2025: दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक मेले में हर प्रकार के साधु संत शामिल हो रहे हैं. इनमें से कुछ संतों के पास सामान्य आदमी से अधिक डिग्री (degree) होती हैं फिर भी वे सन्यासी (monk) बनकर लोगों में आध्यात्मिक ज्ञान (spiritual knowledge) बांटते हुए नजर आते हैं. वहीं कुछ संत दिन-रात मौन (silence) होकर तपस्या (penance) में लीन नजर आते हैं. ऐसे ही एक संत से लोकल 18 की बात हुई जिनहोंने ज्ञान (knowledge) और डिग्री (degree) को लेकर कुछ खास बातें कहीं.
संत योगानंद गिरी मौजूदा समय में श्री पंचदस नाम जूना अखाड़ा (Akhada) के सदस्य हैं। उन्होंने अपने शोध (research) के दौरान यह सिद्ध किया कि धर्म (religion) और विज्ञान (science) एक-दूसरे के पूरक हैं। उनका मानना है कि “धर्म (religion) के बिना विज्ञान (science) और विज्ञान (science) के बिना धर्म (religion) अधूरा है।” इसके अलावा उन्होंने धर्म विज्ञान में परास्नातक (postgraduate) (एमए) की डिग्री (degree) भी हासिल की है।
महाकुंभ मेले में संत डॉक्टर योगानंद गिरी ने लोकल 18 से बातचीत करते हुए कहा कि सनातन धर्म (Sanatan Dharma) दुनिया का ऐसा धर्म (religion) है। जिसमें पहले से ही धर्म (religion) और विज्ञान (science) एक साथ शामिल है। आदिकाल से ही पीपल (Peepal) की पूजा और अन्य वृक्षों (trees) की पूजा सनातन धर्म (Sanatan Dharma) में होती है। वहीं विज्ञान (science) मानता है कि पीपल (Peepal) के वृक्ष (tree) से निकलने वाला ऑक्सीजन (oxygen) काफी फायदेमंद होता है। इसके अलावा सनातन धर्म (Sanatan Dharma) में घर के आगे तुलसी (Tulsi) का पौधा लगाने की परंपरा है। विज्ञान (science) इसको कहता है कि तुलसी (Tulsi) का पौधा (plant) सबसे ज्यादा ऑक्सीजन (oxygen) देता है। इसको घर के आगे लगाने से घर वालों को उचित ऑक्सीजन (oxygen) मिलता रहती है। योगानंद गिरि ने आगे कहा कि विज्ञान (science) से पहले यह सब सनातन धर्म (Sanatan Dharma) की देन है।
आखिर 12 साल बाद क्यों लगता है महाकुंभ मेला (Kumbh Mela)?
दरअसल, कहा जाता है कि है कि देवताओं (gods) और असुरों (demons) के बीच अमृत (nectar) पाने को लेकर लगभग 12 दिनों तक लड़ाई (battle) चली थी। इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि देवताओं (gods) के 12 दिन मनुष्य (human) के 12 सालों के बराबर होते हैं। यही वजह है कि 12 साल बाद महाकुंभ (Mahakumbh) लगता है। इस लड़ाई (battle) के दौरान अमृत (nectar) की कुछ बूंदें 12 स्थानों पर गिरी थीं। जिनमें से चार स्थान पृथ्वी (earth) पर स्थित हैं। इसमें प्रयागराज (Prayagraj), हरिद्वार (Haridwar), उज्जैन (Ujjain) और नासिक (Nashik) शामिल हैं। यही कारण है कि इन स्थानों पर कुंभ मेला (Kumbh Mela) आयोजित किया जाता है। शास्त्रों (scriptures) में प्रयागराज (Prayagraj) को तीर्थ राज (king of pilgrimage) या ‘तीर्थ स्थलों का राजा’ भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि पहला यज्ञ (yajna) ब्रह्मा जी ने यहीं पर किया था। महाभारत (Mahabharat) समेत कई पुराणों (Puranas) में इसे धार्मिक प्रथाओं (religious practices) के लिए जाना जाने वाला एक पवित्र स्थल (holy place) माना गया है।
कैसे तय होता है, कहां लगेगा कुंभ मेला (Kumbh Mela)?
ज्योतिष शास्त्र (astrology) के अनुसार जब बृहस्पति ग्रह (planet Jupiter), वृषभ राशि (Taurus) में हों और इस दौरान सूर्य देव (sun god) मकर राशि (Capricorn) में आते हैं। तब कुंभ मेला (Kumbh Mela) का आयोजन प्रयागराज (Prayagraj) में होता है। ऐसे ही जब गुरु बृहस्पति (Jupiter), कुंभ राशि (Aquarius) में हों और उस दौरान सूर्य देव (sun god) मेष राशि (Aries) में गोचर करते हैं। तब कुंभ (Kumbh) हरिद्वार (Haridwar) में आयोजित किया जाता है। इसके साथ ही जब सूर्य (sun) और बृहस्पति (Jupiter) सिंह राशि (Leo) में विराजमान हो। तब महाकुंभ (Mahakumbh) नासिक (Nashik) में आयोजित किया जाता है। वहीं, जब ग्रह (planet) बृहस्पति (Jupiter) सिंह राशि (Leo) में हों और सूर्य (sun) मेष राशि (Aries) में हों, तो कुंभ (Kumbh) का मेला (Mela) उज्जैन (Ujjain) में लगता है।