पांगी में माघ पूर्णिमा की रात को वाद्य यंत्र बजाकर निभाई धार्मिक परंपरा, दो दिवसीय खाउल मेले का आगाज

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न्यूज हाइलाइट्स

सारांश:

khaual fair started in pangi: जिला चंबा के पांगी घाटी में आज कई कई मान्यताएं प्रचलित हैं। पांगी में मशाल जलाकर पूर्वजों को याद करने की भी मान्यता है।

khaual fair started in pangi: जिला चंबा के पांगी घाटी में आज कई कई मान्यताएं प्रचलित हैं। पांगी में मशाल जलाकर पूर्वजों को याद करने की भी मान्यता है। माघ पूर्णिमा की रात को वाद्य यंत्र बजाकर अपनी धार्मिक परंपरा का कायम रखा हुआ है। सोमवार को पांगी के कवास, कुफा, पुर्थी, शौर, रेई, सैचू, सुण पंचायतों और कुमार पंचायत के परमार गांव लोग अपनी कुलदेवी की पूजा-अर्चना के बाद मशाल जलाकर पूर्वजों को याद किया। वहीं अगले माह के पू​र्णिमा को  मिंधल, फिंडरू, साच, कुठल, कुलाल, फिंडपार, गुवाड़ी, किलाड़, करेल, कुमार, करयास, हुडान में खौउल (चजगी) त्यौहार बनाया जाएगा।

पांगी घाटी में सबसे आखिरी गांव सुराल से यह त्योहार शुरू होता है। खाउल त्योहार से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि पांगी घाटी में सर्दियों के दिनों राक्षस राज होता है। इन्हें अपने क्षेत्र से भगाने के लिए लोग यह त्योहार मनाते हैं। इस दिन लोग विशेष पूजा-अर्चना के बाद घरों से मशाल लेकर निकलते हैं और राक्षसों को भागाते हैं। इस दौरान वाद्य यंत्रों व बांसुरी की धुन पर देवालु यानि चेले इस परंपरा को निभाते है।

इस मेले के दिन घर का मुखिया पंगवाली वेशभूषा में अपने घर पर कुलदेवता की पूजा करता है। शाम ढलते ही ग्रामीण मशाल बनाने की तैयारी में जुटते हैं। चांद निकलते ही लोग मशाल जलाकर घर से निकलते हैं और कुलदेवी के मंदिर का रुख करते हैं। सभी लोग एक कतार में चलते हैं। इससे अगले दिन पूरा प्रजामंडल एकत्रित होकर खाउल उत्सव मनाता है।