Himachal News: शिमला: हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में हर साल मानसून की बारिश अपने साथ तबाही का मंजर लेकर आती है। हिमालयी राज्यों में बार-बार आने वाली आपदाओं का असली कारण जलवायु परिवर्तन से अधिक अनियोजित निर्माण और विकास कार्य है। विशेषज्ञों का कहना है कि चेतावनी व्यवस्था तो बेहतर हुई है लेकिन स्थानीय प्रशासन और समाज अगर समय रहते प्रतिक्रिया नहीं देंगे तो नुकसान रोकना मुश्किल है। नदियों-नालों के किनारे अतिक्रमण, बिना जांच के सड़क और इमारतें, पहाड़ की स्थिरता अनदेखा करना आपदाओं को न्योता दे रहा है। यदि विकास का मॉडल नहीं बदला गया तो भविष्य में हिमालय में आपदाएं और भी डरावनी होंगी।
क्यों बार-बार दरक रहे हैं पहाड़?
विशेषज्ञों के मुताबिक, हिमालयी क्षेत्रों में आपदाओं की असली जड़ unplanned development है। नदियों और नालों के किनारे बिना किसी वैज्ञानिक जांच के किए जा रहे अतिक्रमण, पहाड़ों की स्थिरता को नजरअंदाज करके बनाई जा रही सड़कें और बड़ी-बड़ी इमारतें सीधे तौर पर तबाही को न्योता दे रही हैं। जब भारी बारिश होती है, तो कमजोर हो चुके ये पहाड़ उसे झेल नहीं पाते और भूस्खलन जैसी घटनाएं होती हैं।
चेतावनी सिस्टम तो हैं, पर तैयारी कहां है?
जानकारों का यह भी मानना है कि पिछले कुछ सालों में हमारा early warning system यानी आपदा से पहले चेतावनी देने वाला तंत्र पहले से काफी बेहतर हुआ है। हमें पहले ही पता चल जाता है कि कब भारी बारिश होने वाली है। लेकिन सबसे बड़ी कमी स्थानीय प्रशासन और समाज के स्तर पर है। चेतावनी मिलने के बावजूद समय पर सही कदम नहीं उठाए जाते, जिसकी वजह से जान-माल का भारी नुकसान होता है।
मौसम नहीं, नीतियां हैं असली गुनहगार
यह साफ है कि आपदाओं का पैमाना climate change impact के कारण बढ़ा है, लेकिन हमारी गलत विकास नीतियां आग में घी का काम कर रही हैं। अगर हमने पहाड़ों की नाजुक पारिस्थितिकी को समझे बिना विकास का यही मॉडल जारी रखा, तो वह दिन दूर नहीं जब हिमालय का एक बड़ा हिस्सा ढह जाएगा और भविष्य में आने वाली आपदाएं और भी ज्यादा डरावनी होंगी।