जन्म दर में और पिछड़ा हिमाचल, कम फर्टिलिटी रेट वाले राज्यों में शामिल; क्या वजहें?

 
 जन्म दर में और पिछड़ा हिमाचल, कम फर्टिलिटी रेट वाले राज्यों में शामिल; क्या वजहें?

Image caption:  जन्म दर में और पिछड़ा हिमाचल, कम फर्टिलिटी रेट वाले राज्यों में शामिल; क्या वजहें?

​शिमला: अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर हिमाचल प्रदेश अब एक नई और गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है - घटती आबादी। प्रदेश में बच्चों की जन्म दर में एक चिंताजनक गिरावट देखी गई है, जिससे हिमाचल देश में सबसे कम कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate) वाले राज्यों में से एक बन गया है। राष्ट्रीय प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य (RCH) कार्यक्रम के सलाहकार, डॉ. नरेश पुरोहित ने हाल ही में एक वेबिनार में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि 75 लाख की आबादी वाले हिमाचल प्रदेश में मौजूदा औसत प्रजनन दर गिरकर सिर्फ 1.5 रह गई है। यह दर जनसंख्या को स्थिर बनाए रखने के लिए आवश्यक 2.1 की प्रतिस्थापन दर (Replacement Rate) से काफी कम है। इसका मतलब है कि भविष्य में राज्य की जनसंख्या में कमी आ सकती है। हालांकि, गोवा और सिक्किम में TFR हिमाचल से भी कम है।

लगातार गिर रहे हैं आंकड़े
हिमाचल प्रदेश में प्रजनन दर में यह गिरावट अचानक नहीं आई है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के आंकड़े बताते हैं कि:

  • 2015-16 (NFHS-4) में TFR 1.9 थी।
  • 2019-21 (NFHS-5) में यह घटकर 1.7 हो गई।
  • और अब यह और भी गिरकर 1.5 पर आ गई है।

क्यों घट रही है हिमाचल में प्रजनन दर?
विशेषज्ञों ने इस गिरावट के पीछे कई सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी कारणों को जिम्मेदार ठहराया है । डॉ. पुरोहित के मुताबिक इसका सबसे बड़ा और सकारात्मक कारण महिलाओं में बढ़ती साक्षरता दर है। उन्होंने कहा, "कुल प्रजनन दर (TFR) महिलाओं की साक्षरता दर से बहुत करीबी से जुड़ी है। जैसे-जैसे महिलाओं में साक्षरता दर बढ़ती है, TFR दर भी गिरती है। हिमाचल में महिला साक्षरता दर 75.9% तक पहुंच गई है, जिससे महिलाएं अपने करियर और परिवार नियोजन को लेकर ज्यादा जागरूक हुई हैं। राज्य में महिलाओं के बीच गर्भनिरोधकों के बारे में जानकारी और उनका उपयोग भी देश के अन्य हिस्सों की तुलना में काफी अधिक है। एक हालिया अध्ययन के अनुसार, 15 से 49 वर्ष की आयु वर्ग की लगभग 75% महिलाएं गर्भनिरोधक का उपयोग कर रही हैं। महिलाएं अब करियर और आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दे रही हैं, जिस वजह से उनकी शादी की औसत उम्र भी बढ़ रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (PCOS) जैसी बीमारियां, तनावपूर्ण जीवनशैली और पर्यावरणीय कारक भी बांझपन के मामलों को बढ़ा रहे हैं। यह घटती प्रजनन दर जहां एक ओर महिला सशक्तिकरण और जागरूकता का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर यह भविष्य की जनसांख्यिकीय चुनौतियों की ओर भी इशारा कर रही है।

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