Chamba Pangi News : मलासणी मेले के साथ पांगी में मेलों का आगाज, पुर्थी में मनाया परवाच मेला

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Chamba Pangi News :  हिमाचल प्रदेश का जिला चंबा अपने अनूठे प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता है। जिले के कबायली क्षेत्र पांगी में हर वर्ष कई धार्मिक और सांस्कृतिक मेले आयोजित किए जाते हैं, जो यहाँ के लोगों की परंपराओं और मान्यताओं का जीवंत प्रतिबिंब होते हैं। वहीं सोमवार से पांगी की पुर्थी पंचायत में मलासणी मेले के साथ मेलों का आगाज हो गया हे। यह मेला न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक उत्सव भी है।

मलासणी मेला: सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर

मलासणी मेला पांगी घाटी के सबसे महत्वपूर्ण मेलों में से एक है। बीते दिन सोमवार को इस मेले का आयोजन दिन के समय व रात को किया जाता है।रात को करीब 3 बजे तक यह मेला मनाया जाता है। पांगी की 19 पंचायतों के लोग मलासणी माता के इस मेले के देखने के लिए पहुंचते है। मंदिर में श्रद्धालुओं ने शीश नवाकर पूजा-अर्चना की और अच्छे फसलों और शांति की कामना की। इस मेले की विशेष बात यह है कि यह न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह लोगों को एक साथ लाने और सामाजिक बंधन को मजबूत करने का भी माध्यम है।

मलासणी मेला एक ऐसी परंपरा है जो पांगी घाटी के लोगों की आस्था और विश्वास को दर्शाता है। लोगों की मान्यता है कि इस मेले का आयोजन विशेष रूप से क्षेत्र में अच्छी फसलों और शांति के लिए किया जाता है। पांगी जैसे दुर्गम और कठोर जलवायु वाले क्षेत्र में फसल की अच्छी पैदावार के लिए ईश्वर से प्रार्थना करना आवश्यक माना जाता है, और यह मेला इसी प्रार्थना का परिणाम है। इस मेले को आयेाजन तीन पंचायतों के प्रजामंडल द्वारा किया जाता है। मेले के दिन सुबह से ही मंदिर परिसर में पूजा-अर्चना का आयोजन होता है। मलासणी माता को प्रसाद अर्पित किया जाता है और इस दौरान विशेष धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। मेले का मुख्य उद्देश्य न केवल धार्मिक अनुष्ठानों को संपन्न करना है, बल्कि क्षेत्र के लोगों के बीच सामाजिक समरसता और एकजुटता को बढ़ावा देना भी है।

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Fairs start in Pangi with Malasani Fair || ।mage Source Suraj Sharma

 

मलासणी माता के प्रति गहरी आस्था

मलासणी माता का मंदिर पांगी घाटी में एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, और इस क्षेत्र के लोगों की माता के प्रति गहरी आस्था है। लोग मानते हैं कि माता की पूजा करने से उनके जीवन में शांति और समृद्धि आती है। पूर्व टीएससी सदस्य राज कुमार ने बताया कि मलासणी माता के प्रति लोगों की अटूट श्रद्धा है। मेले के दौरान माता को प्रसाद चढ़ाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है और इसे बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।

सांस्कृतिक कार्यक्रम और पारंपरिक नृत्य

मेले के दौरान शाम को पहले सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है, जो इस उत्सव को और भी खास बनाता है। दोपहर के समय विशाल लंगर का आयोजन किया जाता है, जिसमें सभी श्रद्धालु और स्थानीय लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं। यह लंगर एक प्रकार से सामुदायिक भोजन का प्रतीक है, जहाँ सभी जाति, वर्ग और समुदाय के लोग एकसाथ बैठकर भोजन करते हैं, जो सामाजिक एकता का परिचायक है।

शाम होते ही मेले का मंदिर परिसर के साथ एक मैदान में एकजुट होकर मंदिर के कारदार सज-धज कर विषेश पुजा अर्चना करते है। मंदिर के करीदारों द्वारा  किये जाने वाले नृत्य क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाता है और स्थानीय कला और संस्कृति को जीवंत रखता है। पांगी घाटी के लोग अपनी पारंपरिक धुनों पर थिरकते हैं ।  इस अवसर पर बजंतरियों द्वारा पारंपरिक वाद्य यंत्रों का उपयोग किया जाता है, जो इस उत्सव को और भी खास बनाता है।

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दहकते अंगारों से गुजरना

मलासणी मेले की एक और खासियत है कि माता का चेला जो रात के समय दहकते अंगारों से गुजरता है। यह प्रथा पांगी क्षेत्र में विशेष रूप से पवित्र माना जाता है और इसका प्रतीक है कि माता मलासणी की कृपा से सभी कष्ट और बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं।

लेखक : रंजना राणा 
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