Himachal Cheque Bounce Rule: चेक में एक गलती और आप हो जाएंगे केस से बरी! हाईकोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला

Himachal Cheque Bounce Rule:  हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने चेक बाउंस मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि यदि चेक के साथ कोई छेड़छाड़ या बदलाव किया जाता है तो वह कानूनी रूप से शून्य हो जाता है और ऐसे में चेक जारी करने वाले पर आपराधिक मामला नहीं चलाया जा सकता।

Himachal Cheque Bounce Rule:  चेक बाउंस से जुड़े मामलों में उलझे लाखों लोगों के लिए हिमाचल प्रदेश से एक बड़ी और राहत भरी खबर आई है। हिमाचल हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि अगर किसी चेक के साथ कोई भी छेड़छाड़ की जाती है, तो वह चेक कानूनी तौर पर अमान्य यानी शून्य हो जाता है। ऐसे में चेक जारी करने वाले व्यक्ति के खिलाफ चेक बाउंस का आपराधिक मामला नहीं बनता। यह फैसला उन अनगिनत लोगों के लिए एक बड़ी ढाल बन सकता है, जिनके दिए गए सिक्योरिटी चेक का गलत इस्तेमाल किया जाता है। यह cheque bounce case के नियमों में एक महत्वपूर्ण व्यवस्था है।

क्या था पूरा मामला?

यह पूरा मामला सोलन के राजिंदर शर्मा और बघाट अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक के बीच का था। राजिंदर शर्मा ने बैंक से लोन लिया था, लेकिन वह समय पर उसे चुका नहीं पाए। बैंक का दावा था कि कर्ज चुकाने के लिए शर्मा ने 7 लाख रुपये का एक चेक दिया, जो खाते में पैसे न होने के कारण बाउंस हो गया। इसके बाद बैंक ने शर्मा के खिलाफ निचली अदालत में केस दायर कर दिया, जहां फैसला बैंक के पक्ष में आया। लेकिन मामले में एक बड़ा पेंच था, जिसने पूरे केस की दिशा ही बदल दी।

एक बदलाव ने पलट दिया पूरा केस

राजिंदर शर्मा ने हाईकोर्ट में दलील दी कि बैंक ने उनसे जमानत के तौर पर पांच खाली चेक लिए थे और उन्हीं में से एक का दुरुपयोग किया गया है। सबसे बड़ी बात यह थी कि चेक के साथ छेड़छाड़ की गई थी। जो चेक मूल रूप से खाता संख्या ‘सीडी-5956’ के लिए था, उसे काटकर ‘सीडी-6033’ कर दिया गया था। सुनवाई के दौरान बैंक के अधिकारी ने भी इस बदलाव की बात को स्वीकार किया। यह material alteration in cheque का एक स्पष्ट मामला था, जिसे कोर्ट ने बेहद गंभीरता से लिया।

कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?

हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति राकेश कैंथला ने दोनों निचली अदालतों के फैसलों को रद्द करते हुए राजिंदर शर्मा को बरी कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में बड़ी ही महत्वपूर्ण व्यवस्था दी।

शिकायतकर्ता को ही करना होगा साबित

अदालत ने साफ कहा कि चेक में किया गया कोई भी बदलाव उसके कानूनी स्वरूप को खत्म कर देता है। यदि यह दलील दी जाती है कि चेक में बदलाव खुद चेक के मालिक ने किया है, तो इसे साबित करने की पूरी जिम्मेदारी शिकायतकर्ता (इस मामले में बैंक) की होगी। अगर शिकायतकर्ता यह साबित नहीं कर पाता, तो चेक को छेड़छाड़ युक्त ही माना जाएगा। भले ही किसी व्यक्ति पर देनदारी साबित क्यों न हो जाए, लेकिन अगर चेक ही शून्य हो गया तो negotiable instruments act के तहत आपराधिक मामला नहीं बन सकता। यह high court judgement भविष्य के कई मामलों के लिए नजीर बनेगा।