डोनाल्ड ट्रंप की नई टैरिफ नीति का भारत की अर्थव्यवस्था पर कैसा होगा असर?


नई दिल्ली। भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों में उस वक्त भूचाल आ गया, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश जारी कर भारत पर 25% का अतिरिक्त टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी। इस फैसले ने दोनों देशों के बीच एक नए 'ट्रेड वॉर' यानी व्यापार युद्ध की आशंका को जन्म दे दिया है। ट्रंप प्रशासन ने इस दंडात्मक कार्रवाई की वजह भारत द्वारा रूस से कच्चा तेल खरीदना बताया है, लेकिन इस फैसले पर गंभीर सवाल भी उठ रहे हैं। दुनिया जानती है कि रूस से तेल का सबसे बड़ा खरीदार चीन है, लेकिन अमेरिका ने उसे छोड़कर सिर्फ भारत को निशाना बनाया है, जो इस कदम के पीछे की राजनीतिक मंशा को उजागर करता है।
क्या है ट्रंप का आदेश और कब से होगा लागू?
डोनाल्ड ट्रंप द्वारा जारी कार्यकारी आदेश में साफ तौर पर कहा गया कि, "चूंकि भारत सरकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रूसी मूल के पेट्रोलियम का आयात कर रही है, इसलिए अमेरिकी सीमा शुल्क क्षेत्र में प्रवेश करने वाले भारतीय उत्पादों पर 25 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क लगाया जाएगा। यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह शुल्क पहले से मौजूद 25% आयात शुल्क के अतिरिक्त होगा, जिसका मतलब है कि भारतीय निर्यातकों को अब कुल 50% का भारी-भरकम टैरिफ चुकाना पड़ सकता है। आदेश के अनुसार, यह अतिरिक्त शुल्क 27 अगस्त से प्रभावी होगा, जबकि मूल शुल्क 7 अगस्त से लागू रहेगा।
किन सेक्टर्स पर पड़ेगी सबसे ज्यादा मार?
यह टैरिफ भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले कई प्रमुख निर्यात क्षेत्रों के लिए खतरे की घंटी है। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले सेक्टर हैं:
- टेक्सटाइल और परिधान: भारत का मजबूत कपड़ा उद्योग, जो दुनिया भर में अपनी गुणवत्ता के लिए जाना जाता है।
- रत्न और आभूषण: भारत से होने वाले सबसे बड़े निर्यातों में से एक।
- सीफूड: विशेष रूप से झींगे जैसे समुद्री खाद्य उत्पाद।
- चमड़ा और जूते: चमड़े के उत्पादों का एक बड़ा बाजार अमेरिका है।
- इंजीनियरिंग गुड्स: इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल मशीनरी।
हालांकि, इस आदेश में कुछ आवश्यक वस्तुओं को छूट दी गई है, जिसमें दवाएं, ऊर्जा उत्पाद (कच्चा तेल, गैस, कोयला) और कुछ इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे कंप्यूटर, स्मार्टफोन और टीवी शामिल हैं। लेकिन यह राहत काफी नहीं है, क्योंकि भारत के कुल निर्यात का एक बड़ा हिस्सा इस टैरिफ की चपेट में आ रहा है।
कृषि निर्यात पर संकट के बादल
भारत का कृषि क्षेत्र भी इस फैसले से अछूता नहीं रहेगा। अमेरिका हर साल भारत से 3,00,000 से 3,50,000 टन बासमती चावल खरीदता है। रॉयल शेफ सीक्रेट और दावत सुपर जैसी लोकप्रिय किस्में अमेरिका भेजी जाती हैं। चावल के अलावा तिलहन, अरंडी का तेल, मसाले और काजू जैसे उत्पादों का निर्यात भी बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब भारत अपने कृषि निर्यात को बढ़ाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है।
भारत ने दी तीखी प्रतिक्रिया
भारत ने अमेरिका के इस कदम पर कड़ी आपत्ति जताई है। विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर इसे "अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और एकतरफा" बताया। बयान में कहा गया, "हमने हमेशा स्पष्ट किया है कि भारत की ऊर्जा खरीद नीतियां बाजार की स्थितियों और हमारे 1.4 अरब लोगों की ऊर्जा सुरक्षा की जरूरतों से तय होती हैं। यह चिंताजनक है कि अमेरिका ने केवल भारत को निशाना बनाया, जबकि अन्य देश जो अपने राष्ट्रीय हित में रूस से खरीदारी कर रहे हैं, उन्हें बख्श दिया गया है। भारत अपने हितों की रक्षा के लिए हर जरूरी कदम उठाएगा।"
कितना गंभीर हो सकता है आर्थिक असर?
अर्थशास्त्रियों और व्यापार विशेषज्ञों ने इस फैसले के गंभीर परिणामों को लेकर चेतावनी दी है।
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भारतीय निर्यात महासंघ (FIEO) के डीजी अजय सहाय ने कहा, "यह कदम बेहद चौंकाने वाला है। इससे अमेरिका को होने वाले भारत के कुल निर्यात का लगभग 55% हिस्सा सीधे तौर पर प्रभावित होगा।
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HDFC बैंक की अर्थशास्त्री साक्षी गुप्ता ने कहा, "अगर इस मुद्दे का जल्द कोई समाधान नहीं निकलता है, तो हमें वित्त वर्ष 2025-26 के लिए अपने जीडीपी विकास दर के अनुमान को 6% से भी नीचे लाना पड़ सकता है।
यह टैरिफ न केवल भारतीय निर्यातकों के मुनाफे को खत्म कर देगा, बल्कि लंबे समय में अमेरिकी उपभोक्ताओं की जेब पर भी बोझ डालेगा, क्योंकि भारतीय उत्पादों की कीमतें बढ़ जाएंगी, जिससे वहां महंगाई बढ़ेगी।
क्या व्यापार समझौते के लिए दबाव बना रहा अमेरिका?
कई विशेषज्ञ मानते हैं कि यह टैरिफ ट्रंप की एक सोची-समझी रणनीति है, जिसके जरिए वह भारत पर एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते (Free Trade Agreement - FTA) को जल्द से जल्द अंतिम रूप देने का दबाव बनाना चाहते हैं। अमेरिका लंबे समय से भारत से मांग कर रहा है कि वह औद्योगिक वस्तुओं, इलेक्ट्रिक वाहनों, डेयरी उत्पादों, जीएम फसलों और शराब पर आयात शुल्क कम करे।
आगे क्या होगा?
अब गेंद भारत और अमेरिका के पाले में है। अगर दोनों देश कूटनीतिक बातचीत के जरिए इस गतिरोध को दूर नहीं कर पाते हैं, तो भारतीय निर्यातकों को भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है। यह टैरिफ नीति भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में एक नए और तनावपूर्ण अध्याय की शुरुआत हो सकती है, जो भारत के लिए एक बड़ी राजनीतिक और आर्थिक चुनौती साबित होगी। आने वाले कुछ हफ्ते यह तय करेंगे कि यह व्यापारिक तनाव किसी समझौते पर खत्म होता है या एक पूर्ण व्यापार युद्ध में बदल जाता है।