Himachal News : हिमाचल के कर्मचारी सुक्खू सरकार से क्यों है नाराज, नहीं मिल रहा वित्तीय फायदे
न्यूज हाइलाइट्स
शिमला: शिमला में हिमाचल प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड इंप्लाइज यूनियन की राज्य कमेटी की बैठक में यूनियन के अध्यक्ष केडी शर्मा ने बोर्ड की खराब स्थिति पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि आज बिजली बोर्ड की हालत 53 साल के इतिहास में सबसे दयनीय है, जिसके लिए सीधे तौर पर प्रदेश सरकार दोषी है। पिछले एक दशक से सरकार ने बिजली बोर्ड जैसे बड़े संस्थानों को एडहॉक प्रबंधन में चलाया है।
प्रयोगशाला ने ऊर्जा क्षेत्र बनाया
केडी शर्मा ने कहा, “लंबे समय से अस्थायी प्रबंधन की वजह से बोर्ड की हालत खराब है। जिन अधिकारियों को बोर्ड का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया है, उन्होंने राज्य के ऊर्जा क्षेत्र को डेढ़ साल से प्रयोगशाला नहीं बनाया है. बिजली बोर्ड और पेंशनरों को इसका भुगतान करना पड़ रहा है। उन्होने कहा कि बिजली बोर्ड में पूर्णकालिक निदेशक व निदेशक मंडल की बैठकें समय पर नहीं हो पा रही हैं क्योंकि प्रबंध निदेशक लंबे समय से अस्थायी आगन्तुक की तरह 7 से 10 दिन में एक बार आ रहे हैं।
ऐसे में लंबे समय से कई महत्वपूर्ण पदोन्नतियां और निर्णय लटकी पड़ी हैं। पिछले वर्ष मई में सर्विस कमेटी ने जो निर्णय लिए थे, वे अभी तक लागू नहीं हुए हैं। इसमें निदेशक मंडल ने 20 मई 2023 को बोर्ड में 1100 तकनीकी कर्मचारियों को भरने का निर्णय लिया था, लेकिन अभी तक भर्ती प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है।
न्यायिक जांच की घोषणा
युनियन ने अधिकारियों की वजह से बोर्ड और राज्य की जनता को हुए नुकसान की एक चार्जशीट बनाकर सरकार को भेजी थी, लेकिन उस पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। यूनियन ने मामले की गम्भीरता को देखते हुए उच्च न्यायालय में जांच की याचिका दायर करने का फैसला किया है।
यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष ने कहा कि खराब प्रबंधन ने आज बिजली बोर्ड को गंभीर वित्तीय संकट में डाल दिया है, जिससे कर्मचारियों और पेंशनर्स के वित्तीय लाभ ठप हैं। स्थिति यह है कि कर्मचारियों को पिछले एक वर्ष से रिटायरमेंट अवकाश और ग्रेच्युटी नहीं मिली है। आज बिजली बोर्ड कर्मचारियों की कमी से संघर्ष कर रहा है। तकनीकी कर्मचारी हर साल 30 से 45 दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं क्योंकि वे 48-48 घंटे काम करते हैं।
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